“लाख समस्याओं का एक समाधान – सनातन”

इस वामपंथ लेख श्रृंखला में  हमने वामपंथियों और उनकी रणनीतियों के बारे में जाना।

आज जानेंगे कि इस राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों से बचने का तोड़ क्या है –

अगर मैं आप सबसे सीधे शब्दों में  कहूं कि इन लोगों का तोड़ एक ही है वो है –

 “सनातन” संस्कृति को अपने जीवन आचरण में लाना। तो आप क्या कहेंगे???

शायद आप थोड़ा चौंक जाएंगे!! या फिर शायद न भी चौंके….. पर सत्य तो यही है……

 तो आज हम साम्यवाद (communism) और सनातन के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन करेंगे और आखिर तक मैं इस बात को पूरा समझाने का प्रयास करूंगा कि कैसे हम सबका अपने “सनातन मूल्यों” का अभ्यास करना हमारे देश को वामपंथियों  की हिंसा की विचारधारा (leftists’s ideology of violence) से मुक्त कर सकता है।

अगर “साम्यवादियों” ( communists)  के सिध्दांतों की बात की जाए  तो चाहे वो –

*सीमाओं के उन्मूलन की विचार हो।

*राज्य या राष्ट्र अवधारणा को समाप्त करना या फिर अराजकता के समर्थन का सिध्दांत हो।

*एक वर्गविहीन (categoryless) समाज की स्थापना का विचार हो जिसमें जाति या वर्ग न हो सिर्फ मानवता की ही बात हो।

*धन और संपत्ति का वितरण आवाश्यकतानुसार हो और समाज के ही द्वारा हो, कोई भी व्यक्ति व्यक्तिगत संपदा न रखे।

अब यहां पर अगर इन सब सिध्दांतों पर गौर किया जाये तो आप पायेंगे कि इनमें कुछ ग़लत नहीं है बल्कि बातें तो बड़ी ही अच्छी कही गईं हैं और इनसे निर्धन – ग़रीब, वंचित – शोषित प्रभावित भी जल्दी हो सकते हैं।

लेकिन इन सब सिध्दांतों को लागू करने का मूल भाव होना चाहिए था “प्रेम और करूणा” ।

और इन सब सिध्दांतों का अनुसरण तो बिना सत्ता में रहे भी किया जा सकता था, इसमें सत्ता प्राप्ति की कोई आवश्यकता नहीं थी।

यहीं सबसे “महाभयंकर भूल” इन वामपंथियों (leftists) ने कर दी।

साम्यवादी सिध्दांतों (communism) को लागू करवाने के लिए इन्होंने प्रेम और करूणा की बजाय “हिंसा का मार्ग” (path of voilence) अपनाया और वर्तमान तंत्र (current system) को उखाड़ फेंक “साम्यवादी शासन” (communist rule) स्थापित करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए “हिंसा का मार्ग” अपनाया।

यहीं इनका मानवतावादी होने का दावा ही समाप्त हो गया।

इसका कारण सिर्फ इतना ही है कि जब कोई भी व्यक्ति अपनी विचारधारा (ideology) या उन सिद्धांतों (principles) जिनको वो अपने जीवन के आचरण हेतु सबसे आदर्श मानता है। उन सिद्धांतों के बारे में यह मानने लगे कि “सिर्फ यही विचारधारा सर्वश्रेष्ठ है” और इतनी श्रेष्ठ (superior) है कि समाज को इसका अनुसरण कराने के लिए हिंसा का मार्ग भी अपनाया जा सकता है तब यह एक उन्माद (frenzy), एक पागलपन में बदल जाता है।

बिल्कुल यही स्थिति “जिहादियों और आतंकवादियों” की है  क्योंकि उनका भी यही मानना है कि हमारा मज़हब  इतना अधिक श्रेष्ठ (superior) है कि विश्व के सभी लोगों को इस मज़हब का अनुयायी बनाने के लिए हिंसा भी करनी पड़े तो भी उसमें कोई ग़लत बात नहीं है क्योंकि हम हिंसा ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ ध्येय की सिध्दि (fruition of the best motto) के लिए ही कर रहे हैं और इस तरह वो अपनी हिंसा को न्यायसंगत (justified) बताते हैं।

और यही हाल इन वामपंथियों का भी है इनको भी अपना ध्येय सर्वश्रेष्ठ मालूम पड़ता है जिससे ये भी हिंसा करते आ रहे हैं और हर मंच से हिंसा की न्यायसंगतता सिध्द करते हैं इसीलिए यह दोनों अब साथ हो लिए हैं।

यह पागलपन काफी समय से चला  आ रहा है।

एक मज़हब के मानने वाले कट्टरपंथियों ने भी और साम्यवादी विचारधारा (communism) को मानने वाले लोगों ने अपने शांतिपूर्ण मज़हब और विचारधारा को प्रसारित करने या फैलाने के लिए प्रेम और करूणा नहीं बल्कि “हिंसा” (voilence) का मार्ग अपनाया।

शांति का मज़हब फैलाने के लिए अशांति का सहारा लिया गया।

और मानवतावाद (humanism) की बात करने वाले साम्यवादियों (communism) ने अपने तंत्र को लागू करने के लिए  “अमानवीयता”(inhumanity) का मार्ग अपनाया।

अब आते हैं उस बात पर कैसे सनातन मूल्यों के बल से हम इन “हिंसक राक्षसों” को हरा सकते हैं।

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि “आप एक समुद्र के किनारे बैठे हैं और समुद्र क्षेत्र पर आपका पूर्ण अधिकार है, आप सारा समुद्र घूम सकते हैं उसमें स्नान कर सकते हैं  यानि कि समुद्र भी आपका और समुद्र तट भी आपका…..

अगर मैं वहां आकर आपसे कहूं कि ज़रा मेरे साथ आइये मैं आपको पानी से भरा एक छोटा सा तालाब या छोटी सी नदी दिखाना चाहता हूं तो आप क्या कहेंगे???

आपकी तो हंसी निकल पड़ेगी…..

आप कहेंगे कि जिसके पास पूरा का पूरा समुद्र उपलब्ध है वो छोटे मोटे नदी – तालाबों के पीछे क्यों भागेगा???

अब इसी चीज़ को इस तरह समझिए कि वह समुद्र है हमारी “सनातन संस्कृति और उसका शाश्वत ज्ञान” और वह गांव का छोटा सा तालाब या नदी है साम्यवाद।

आपको शायद थोड़ा गुस्सा आ रहा होगा कि ये आदमी “साम्यवाद” (communism) और सनातन की बात एक साथ कैसे कर रहा है क्योंकि आपको पिछले लेखों में जो वामपंथ (left wing) के बारे में जो जानकारी मिली उससे तो आपको अब “वामपंथ” शब्द ही एक गाली लगने लगा होगा, यही होता है मित्रों जब कोई भी सिध्दांत, चाहे वो कितना ही उच्च कोटि का क्यों न हो, कोई भी मज़हब, चाहे कितनी भी “शांति” की बातें क्यों न करता हो अगर हिंसा के द्वारा अपने सिध्दांत थोपेगा तो गाली ही बनकर रह जायेगा।

हिंसा से कभी शांति और मानवता नहीं फैलती।

अब सनातन‌ वो समुद्र कैसे हुआ ये समझते हैं –

*कम्युनिज्म धन का वितरण समाज के हाथ में होना चाहिए ऐसी बात कहता है….

और सनातन इस बारे में क्या कहता है सुनिए….

सनातन कहता है  –

“शतहस्त समाहर सहस्त्र हस्त संकिर” –

 अर्थात् “सौ हाथों से कमाओ और हज़ार हाथों से दान करो”

*(अथर्ववेद 3/24/5)

अगर इस सीख को हम अपने जीवन में अनुसरण करें।

तो धन किसी के भी पास रहे उस व्यक्ति तक पहुंच ही जायेगा जिसको धन की आवश्यकता है।

और यह बात लागू तो सबके लिए  लागू होती है लेकिन धनवानों को तो स्वेच्छा से ही यह बात माननी चाहिए।

इससे पूरे राष्ट्र में कोई वंचित न रहेगा।

**साम्यवाद कहता है कि सीमाओं का उन्मूलन अर्थात् देशों की सीमाएं (borders of the nations) समाप्त कर देनी चाहिए और समाज वर्गविहीन हो, सिर्फ मानवता की बात हो।

जबकि सनातन इस विचार को और बेहतर तरीके से करूणापूर्वक कहता है।

“अयं निज: प्रो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्।।

*(महोपनिषद्, अध्याय ४(4), श्‍लोक ७१(71))

अर्थात् यह अपना बंधु है यह अपना बंधु नहीं है ऐसी छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वालों के लिए तो पूरी धरती ही परिवार है।

अब अगर यह बात जीवन में हम उतार लें तो हमारे मन की सीमाएं तो वैसे ही समाप्त हो गईं फिर भौतिक सीमाएं (physical borders) का मूल्य ही नहीं रह जायेगा, जब सभी अपना ही परिवार हैं तो क्या आस्ट्रेलिया और क्या जापान??? राष्ट्र और वर्गों में बंटे समाज  की अवधारणा तो ऐसे ही समाप्त हो गई।

और सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब बातें सनातन प्रेम और करुणा के द्वारा प्रसारित करने की बात करता है न कि हिंसा के द्वारा।

सनातन में दान की तो कई जिस की ही गई है साथ ही पुरुषार्थ और स्वाबलंबन की बात भी कही गई है ताकि लोग आलस्यपूर्ण और अकर्मण्य (निकम्मे) न हो जायें।

ताकि लोगों की इस दान वृत्ति का दुरुपयोग न हो।

अब जब किसी भी व्यक्ति के पास पूरा “समुद्र” ही उपलब्ध हो तो वो छोटे मोटे नदी तालाबों से क्या प्रभावित होगा और सनातन का अर्थ ही है जो अनंत है, और अंतिम गंतव्य (final destination) है सबसे अच्छी बात यह है कि मतभेदों के लिए भी जगह है, बदलाव के लिए हम हमेशा तैयार रहते हैं हर सदी में “ब्रह्मसूत्र” पर एक टीका लिखते हैं, अगर कोई मतभेद हो तो “शास्त्रार्थ” की व्यवस्था है, यहां तक कि  ईश्वर में नहीं मानोगे तो “नास्तिक” होने की भी सुविधा है,

नास्तिक हो फिर भी हिंदू हो।

ये जो मैंने यहां बताया ये तो सनातन समुद्र की एक बूंद भी न थी,‌ अभी तो पूरा समुद्र नापना है।

अब अगर आपको यह सब अपने जीवन में उतारना कठिन लगता है तो एक बात मैं आपसे कह दूं कि समुद्र की सैर करने की बात करोगे तो समुद्री तूफान भी आपके हिस्से आयेंगे लेकिन विश्वास मानिए कि इस “सनातनी समुद्र” की यात्रा ही  इतनी आनन्द दायक होगी कि तूफान बहुत छोटे मालूम पड़ेंगे।

ये तो हुई बड़े स्तर पर इनसे निपटने की बात…..

ये बिल्कुल ही अंतिम समाधान था…

अब सनातन से निकले समाधान तो अंतिम और स्थायी ही होंगे न।

आगे और भी कुछ कहना है कि हम छोटे छोटे और क्या क्या प्रयास कर सकते हैं कि जिससे हम बाहरी स्तर पर इनसे निपट सकें। 🙏🙏🙏🙏

तब तक के लिए

हर हर महादेव 🙏🙏🙏🙏

पिछले लेखों में हमने जाना कि किस तरह से किस तरह नक्सलियों द्वारा वन्य क्षेत्रों में फिरौती वसूली जाती है और किन कार्यों में यह पैसा अर्बन नक्सलियों द्वारा उपयोग किया जाता है।

आज बात करेंगे कि किस तरह आपातकाल के समय वामपंथियों ने देश की पूरी व्यवस्था में सेंधमारी कर उस पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।

 सन २००४ (2004) में माओवादी संविधान “स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ द अर्बन पर्सपेक्टिव” (strategy and tactics document with the urban perspective) पर आधारित जो एफिडेविट सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था और फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री यह दावा करते हैं कि उनके पास पर्याप्त साक्ष्य हैं कि जिन लोगों ने भूल से इस रिपोर्ट को सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया था उन्हें सोनिया गांधी द्वारा नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (NAC – national advisory council) गठित कर  दण्डित किया गया था।

विवेक अग्निहोत्री द्वारा “बुध्दा इन ए ट्राफिक जाम” नामक एक फिल्म बनाई गई जिसे उन्होंने अनजाने में बनाया था, उन्हीं फिल्म वितरकों को रिलीज़ के लिए दे दी जो कि स्वयं शहरी नक्सली थे बिना इस अनुमान के कि यह फिल्म  इनके ही विरुद्ध थी, फिर जेएनयू में यह फिल्म दिखाने के लिए जेएनयू की सिनेमा शिक्षण विभाग की डीन को भेजी जबकि वो भी स्वयं एक “शहरी नक्सली” थीं।

जाधवपुर विश्वविद्यालय में भी इस फिल्म के कारण “विवेक अग्निहोत्री” पर हमला किया गया क्योंकि यह विश्वविद्यालय भी जेएनयू की तरह इन शहरी नक्सलियों का गढ़ बन चुका है और यहां कई नेताओं के कार्यक्रम में प्रदर्शन भी किए गए हैं।

इस सब में कांग्रेस पार्टी के प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होने के कारणों पर जब उन्होंने शोध किया तो उन्हें कुछ “सीआईए” और “केजीबी” जासूसी संस्थानों के दस्तावेज प्राप्त हुए जिनमें एक भारतीय राजनेत्री के लिए शब्द “वानो” (VANO) प्रयोग किया गया था जिसे आगे और शोध करने पाया गया कि एक “सीआईए” और “केजीबी” डॉक्यूमेंट के दस्तावेजों पर आधारित पुस्तक “मित्रोखिन आर्काइव्स”(mitrokhin archives) में यह उल्लेख है कि यह शब्द तत्कालीन प्रधानमंत्री “इंदिरा गांधी” के लिए प्रयोग किया गया था और यह बात इसी पुस्तक का संदर्भ देकर शास्त्रीजी की रहस्यपूर्ण मृत्यु पर आधारित फिल्म “ताशकंद फाइल्स” में भी दिखाई गई थी।

सत्तर के दशक में जब इंदिरा गांधी की पकड़ कमज़ोर पड़ रही थी तब उन्होंने अपने पैर वापस से जमाने के लिए तब सारे कम्युनिस्टों से सहायता  ली और यहीं “इंदिरा गांधी” ने अनजाने में बहुत बड़ी भूल कर दी।

इंदिरा गांधी और कम्युनिस्टों के बीच की सौदेबाज़ी में, कम्युनिस्टों द्वारा इंदिरा गांधी को समर्थन दिया गया और बदले में कम्युनिस्टों ने देश की व्यवस्था में सारे महत्वपूर्ण पद कब्ज़ा लिए।

नूरुल हसन को शिक्षा मंत्री बना दिया गया, कला और संस्कृति विभागों के महत्वपूर्ण पदों और मीडिया में एक के बाद एक सारे कम्युनिस्टों को बैठा दिया गया।

उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशन के लिए एक कोटा निर्धारित था जिसे “न्यूज़ प्रिंट” कहा जाता था उसमें कुछ भी प्रकाशित करने से पहले इंदिरा गांधी और नूरुल हसन द्वारा सहमति देने के बाद ही प्रकाशन की अनुमति मिलती थी और यह न्यूज़ प्रिंट पूरा का पूरा कम्युनिस्टों को दे दिया गया।

अब आप यह समझ ही सकते हैं कि अगर कोई एक विशेष राजनीतिक विचारधारा का समर्थक व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर आसीन हो जाता है तो वह कौन कौन से तरीके न अपनायेगा लोगों को उस विचारधारा के प्रति झुकाने में??

और यहां तो सभी प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण पदों पर ही कम्युनिस्टों की पूरी की पूरी फौज बैठा दी गई थी।

फिर उसी समय से ही, लगभग सन् १९७५ (1975) के बाद से ही कम्युनिस्टों ने अपनी योजना के अंतर्गत हिंदू संस्कृति और सभ्यता पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और इसी कारण १९७५ (1975) के बाद से ही जो भी पीढ़ियां आईं वो अपने हिंदू परिवारों में जन्म लेने के कारण एक तरह के पिछड़ेपन और हीन भावना को लेकर बड़े हुए क्योंकि उन्हें हमारी संस्कृति की महानता, चंद्रगुप्त मौर्य, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे महान हिंदू सम्राटों, हम्पी और खजुराहो जैसी महान और अध्यात्मिक शिल्पकलाओं, श्री अरविंदो, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों के बारे में उनका ज्ञान अति अल्प या नगण्य था और इसका कारण यही था कि भारत और भारतीय संस्कृति की महानता को सिध्द करने वाली सभी घटनाओं और सभी साक्ष्यों को विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कम से कम या नगण्य स्थान दिया गया।

इसके विपरीत भारत के इतिहास की सभी नकारात्मक घटनाओं और बर्बर आक्रमणकारियों के गुणगान से पाठ्यक्रमों को भर दिया गया ताकि एक हीन भावना से ग्रसित समाज भारत देश में उत्पन्न किया जा सके क्योंकि हीन भावना से ग्रसित समाज कभी सत्य के लिए उठ नहीं सकता और न राष्ट्र की रक्षा के लिए लड़ सकता है और उसे गुलामों की तरह किसी भी तरफ मोड़ना बिल्कुल आसान होता है।

वामपंथियों के दस्तावेज रूपी संविधान – “स्ट्रेटिजी एंड टैकटिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव” (strategy and tactics document with the urban perspective) में यह साफ साफ लिखा है कि हिंदूओं की धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक स्थलों को सीधी चुनौती दी जाये ताकि हिंदू परिवारों का वहां जाना बंद हो जाए।

इसी षड्यंत्र के अनुसार “खजुराहो के मंदिरों” को “कामुकता” के प्रतीक के रूप में भारतीयों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जबकि खजुराहो के मंदिरों के बाहर बनी कुछ “तांत्रिक” हैं और “अध्यात्मिक प्रक्रिया” में उनका प्रयोग ध्यान हेतु किया जाता रहा है। इसकी विस्तृत चर्चा बाद में करेंगे।

भारत के सारे महान विचारों और घटनाओं को इन लोगों ने पूर्णतः बर्बाद करने का प्रयास किया है एवं पूरी शिक्षा व्यवस्था का आधुनिकीकरण करने स्थान पर अमेरिकीकरण और अंग्रेज़ीकरण करने पर अधिक ज़ोर दिया या यूं कहें कि शिक्षा के अमेरीकीकरण और अंग्रेज़ीकरण को ही आधुनिकता का नाम दे दिया, उसका पर्याय बना दिया।

कांग्रेस पार्टी द्वारा अर्बन नक्सलियों के कब्जे वाले कई संगठन गठित किए – “नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन”, “चाइल्ड फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन” इत्यादि  जिनके सिंहासन “अर्बन नक्सलियों” के लिए सुरक्षित थे तभी हिंदी फिल्मों में हिंदू धर्म और संस्कृति का निरंतर मज़ाक उड़ाया जाता रहा है।

ये लोगों भारत के बाहरी दुश्मनों से अधिक ख़तरनाक हैं क्योंकि ये भारत को अंदर से खोखला तो कर ही रहे हैं, साथ ही बाहरी विरोधी भी इनसे अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्राप्त करते हैं।

इन लोगों को हमें पहचानने आवश्यकता है और इनका हर तरफ से विरोध करना है ताकि देश को इनसे बचाया जा सके।

अब शेष बातें आगे के लेख में और शायद अगला लेख वामपंथ लेख श्रृंखला का अंतिम लेख हो।

तब तक के लिए

हर हर महादेव 🙏🙏🙏

पिछले लेखों में हमने जाना कि किस तरह देशभर में दस्तावेज रूपी संविधान “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) में उल्लिखित रणनीति के अनुसार वामपंथी संगठन कार्य करते हैं और कैसे इनके आतंकी और उग्रवादी संगठनों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से संबंध (direct and indirect links) हैं।

आज हम जानेंगे कि तरह ये लोग किस तरह अपनी हिंसक क्रांति के लिए निर्धन और मासूम आदिवासियों से और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने या कोई काम करने वाले लोगों से पैसे ऐंठते हैं।

आप सबने कई बार टीवी बहसों (debates) में बैठे अर्बन नक्सलियों को भारत की शिक्षा व्यवस्था, अस्पतालों, सड़कों पर ज्ञान देते हुए सुना होगा कि हमारे देश में सबको शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन की लोगों को उपलब्ध नहीं हैं।

जबकि यही अर्बन नक्सली, जिन नक्सलियों को शहरों से दाना पानी पहुंचाने का काम करते हैं वो ही नक्सली प्रशासन की ओर से बनने वाले विद्यालयों, अस्पतालों, सड़कों को तोड़ते और नुकसान पहुंचाते हैं।

भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसी (intelligence agency of india) द्वारा पुलिस कमिश्नर के माध्यम से २०१६ (2016) में महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार को एक रिपोर्ट में नक्सलियों द्वारा फिरौती का पैसा ऐंठने का पूरा विवरण, पूरा डेटा सौंपा गया था।

इस पूरा डेटा में बताया गया था कि २०१६ (2016) में पूरे छत्तीसगढ़ के वन्य क्षेत्रों से ३०० (300) करोड़ और और पूरे भारत देश से १००० (1000) करोड़ की राशि आदिवासियों से नक्सलियों द्वारा फिरौती के रूप में ऐंठी गई है।

 इस पैसे का उपयोग कहां होता है??

इस पैसे का उपयोग होता है – कम्युनिज़्म समर्थक मीडिया हाउस, थिंक टैंक (विचारक समूह) की फंडिंग, साहित्यिक सम्मेलनों के आयोजन और तरह-तरह के अभियान चलाने के लिए होता है। इन्हीं पैसों से “अरुंधति रॉय” जैसे लोग १० – १० करोड़ रुपए तक के समारोहों का आयोजन करते हैं।

“अरुंधति रॉय” खुलकर अपनी बातें मनवाने के लिए हिंसा और उग्र तरीके अपनाए जाने की पक्षधर रही हैं और भड़काऊ बयान भी देती रहतीं हैं।

इन्हीं सब मंचों के माध्यम से लोगों की विचारधारा को प्रभावित करने का काम किया जाता है और उनकी सोच को “कम्युनिज़्म” की तरफ झुकाने का प्रयास किया जाता है और लोगों की सोच प्रभावित करने में मीडिया का कितना बड़ा हाथ है यह किसी से छुपा नहीं है।

 “आज किसी भी व्यक्ति की विचारधारा देखकर यह आसानी से बताया जा सकता है कि वह कौन सा न्यूज़ चैनल देखता होगा”।

*ये “अर्बन नक्सली” शहरों में बैठकर हमेशा आदिवासियों की, ग़रीबों की बात करेंगे लेकिन इनके ही पाले हुए “नक्सली” जब एक १० साल बच्ची जो कि जंगल से तेंदुपत्ता लेकर बाज़ार में बेंचने जाती है उससे तक ये नक्सली फिरौती वसूली कर लेते हैं और पूरे एक सीज़न में ६० (60) करोड़ तक छोटे छोटे आदिवासी बच्चों से वसूल लिये जाते हैं।

*शहरों में बैठे नक्सली (अर्बन नक्सली) शिक्षा और सुविधाओं का ज्ञान बघारते हैं और दूसरी तरफ नक्सली आदिवासी क्षेत्रों में होने वाले बड़े निर्माण कार्यों जैसे विद्यालयों, सड़कों की निर्माण लागत का १५{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}(15{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा और छोटे मोटे निर्माण कार्यों की लागत का १०{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503} (10{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा फिरौती के रूप में ऐंठा जाता है।

**रास्ते से निकलने वाले वाहनों को १००० (1000) रुपए प्रति ट्रिप इन नक्सलियों को देने पड़ते हैं।

**शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों और मंदिर के पुजारियों तक को अपने वेतन का हिस्सा इनको फिरौती के रूप में देना पड़ता है।

**खेती-बाड़ी उपकरणों के ऑपरेटरों को भी अपनी कमाई का १०{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503} (10{551c903f756d5bf12b7d58e2eb1e8b74af35058efa7a05d3e7b41e9147979503}) पैसा नक्सलियों को देना पड़ता है।

**साप्ताहिक हाट-बाजार के व्यापारियों को खाद्य सामग्री, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को चंदा इन नक्सलियों को देना पड़ता है।

और तो और भारत सरकार की “मनरेगा” योजना में पंजीकृत मज़दूरों से १३० (130) करोड़ रुपए प्रत्येक महीने में वसूल लिए जाते हैं।

यह २०१६ (2016) के आंकड़े हैं और महाराष्ट्र सरकार की इंटेलिजेंस एजेंसी के पास भी यह रिपोर्ट है।

राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकार हमेशा यह बोलते रहते हैं कि सुधा भारद्वाज जैसे महान सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया जो कि आदिवासियों के केस का न्यायालयों में प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि सत्य तो यह है कि ये लोग एक भी आदिवासी का केस नहीं लड़ते बल्कि सिर्फ और सिर्फ नक्सलियों के केस लड़ते हैं।

अर्बन नक्सलियों के प्रत्यक्ष संगठन (front organization/ FO) जिन्हें “एफ ओ” भी कहा जाता है जिनमें से कुछ नाम हैं –

दण्डकारण्य आदिवासी किसान महिला संघ, आदिवासी बालक संघ, महिला मुक्ति संघ, कबीर कला मंच, दिल्ली सफाई कर्मचारी संघ ये सारे के सारे सामाजिक और कला संगठनों के वेश में हुए अर्बन नक्सलियों के प्रत्यक्ष संगठन हैं।

जंगलों से फिरौती वसूली द्वारा पैसा, पूर्वोत्तर से “लाल आतंक” के लिए फंडिंग, पश्चिमी भागों से “इस्लामिक आतंकवाद” हेतु फंडिग प्राप्त करके ये लोग देश में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और हिंसा द्वारा अस्तव्यस्तता और तनाव फैलाने के प्रयास करते हैं।

अगले लेख में आपको यह समझाने का प्रयास करूंगा कि किस तरह “आपातकाल” के समय इन लोगों ने पूरे देश की “व्यवस्था” पर कब्ज़ा किया और इनका वर्तमान में देश के अयोग्यता को अपने सर पर ढ़ोते “प्रमुख विपक्षी दल” से क्या संबंध है।

तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏

पिछले लेखों में हमने जाना कि सर्वोच्च न्यायालय में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में वामपंथियों के संविधान “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) में किस तरह इनकी योजना के बारे में जानकारी है और किस तरह इनकी रणनीति के अनुसार इन्होंने अलग-अलग जगह पर अपने संगठन बना रखे हैं, आज उन्हीं संगठनों की जानकारी और कार्यप्रणाली के बारे में समझेंगे।

कम्युनिस्टों ने भारतीय तंत्र पर सामने से आक्रमण करने के लिए “नक्सलवाद” (माओवाद) का आंदोलन प्रारंभ किया। भले ही “माओवादी” जंगलों में रहकर भारतीय सैनिकों और पुलिसकर्मियों से “गुरिल्ला युद्ध” लड़ते हैं लेकिन इस विद्रोही विचारधारा को जनता का समर्थन और धन का प्रबंध शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग करते हैं इसीलिए ये लोग “शहरी नक्सली” (urban naxals) कहलाते हैं।

जैसा कि मैंने आपको पिछले लेखों में बताया कि ये अलग-अलग तरह की विचारधारा के संगठनों से अपना “इंद्रधनुष गठबंधन” (rainbow coalition) बनाते हैं, जैसे “आतंकवादी संगठनों” का उद्देश्य हिंसा के द्वारा “ग़ज़बा ए हिंद” और  दुनिया का इस्लामीकरण करना है और कम्युनिस्टों का उद्देश्य हिंसक क्रांति द्वारा “माओवादी शासन” स्थापित करना है।

यहां दोनों का उद्देश्य भले ही अलग-अलग है पर मार्ग एक ही है  – “हिंसा का मार्ग”

इसीलिए इन “अर्बन नक्सलियों” का जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर भारत के सभी उग्रवादी संगठनों से गठजोड़ है।

जम्मू कश्मीर में जम्मू-कश्मीर आतंकवादी संगठन, लश्कर-ए-तैयबा और “सिमी संगठन” से इनका सीधा संबंध है।

पूर्वोत्तर में “युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम”, नेशनलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड जैसे संगठनों से इनके संबंध हैं।

नेपाल को एक तरह का क्रांति स्थल (compact revolutionary zone)बनाने के लिए नेपाल में भी ये कार्य कर रहे हैं, इसी कारण नेपाल आज इतनी उथल-पुथल देख रहा है।

आतंकी संगठनों और अर्बन नक्सलियों मध्य संबंधों का अनुमान इसी घटना से लगाया जा सकता है कि जब २००२ में कोलकाता में “अमेरिकन कल्चरल सेंटर” पर जो आतंकी हमला हुआ था उस आतंकी संगठन के प्रमुख और हमले के मास्टरमाइंड ने झारखंड में एक “नक्सली समर्थक” के घर में शरण ली थी।

दक्षिण एशिया में इन्होंने “कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ द माओइस्ट पार्टी ऑफ साउथ एशिया” नाम के संगठन के रूप में 

नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका का एक त्रिकोणीय संगठन बनाया है जिसका मुख्यालय “भारत” में है।

इनके आई सी आई और लिट्टे जैसे आतंकी संगठनों से भी संबंध हैं, इनके अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रांतिकारी आंदोलन चलते रहते हैं, इनका फिलीपींस में भी एक लेफ्ट विंग संगठन है।

वामपंथियों को नक्सल आंदोलन लाल आतंक हेतु “बैंकाक” तक से फंडिंग मिलती है जहां पर एक “राजनैतिक पार्टी के राजकुमार” आदतन हर तीन माह में भ्रमण हेतु जाते रहते हैं।

START – National consortium for the study of terrorism and responses to terrorism (नेशनल कंसोर्टियम फॉर द स्टडी ऑफ टेरोरिज्म एंड रिस्पॉन्सेज़ टू टेरेरिज्म) ने इन लाल आतंकियों को विश्व का “पांचवां”  सबसे ख़तरनाक (घातक) आतंकवादी संगठन घोषित किया है।

अगर पूरे विश्व ने  “हिंसा के प्रयोग से लोगों को भयग्रस्त करके अपने राजनैतिक स्वार्थों को साधने को ही आतंकवाद की परिभाषा माना है” तो इन लोगों को क्यों आतंकवादी घोषित नहीं किया जाता है जबकि नक्सली आंदोलन के साथ साथ इनका हर एक तथाकथित शांतिपूर्ण आंदोलन या कोई भी जुलूस हिंसा पर ही जाकर समाप्त होता है।

शाहीन बाग़ से दिल्ली दंगों तक और भीमा कोरेगांव हिंसा इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

पिछले लेखों में मैंने इनके दस्तावेज रूपी संविधान को “संवेदनहीन” कहा है उसका कारण यह है कि ये बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में जन अदालत चलाते हैं और उसमें किसी अपराध की सज़ा देते हुए कहते हैं कि इसको “डेढ़ फुटा” कर दो मतलब व्यक्ति की गर्दन अलग कर दी जाये ताकि “डेढ़ फुट” लंबाई कम हो जाये और ये बर्बरता चलती है इनकी जन अदालतों में।

आगे के लेखों में जानेंगे कि किस तरह से नक्सल क्षेत्रों में ये फिरौती के रूप में लोगों धन ऐंठते हैं और कैसे  अर्बन नक्सलियों के रूप में इन्होंने भारत की व्यवस्था पर कब्ज़ा किया।

तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏

पिछले लेखों में मैंने आपको बताया कि वामपंथी किस तरह  काम करते हैं आज इनके उस दस्तावेज जो कि इनका संविधान है उसकी अन्य बातें व्याख्या सहित समझेंगे।

Strategy and tactics of the Indian revolution by Maoists (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स ऑफ द इंडियन रिवोल्यूशन बाय माओइस्ट्स) –

गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जो रिपोर्ट प्रस्तुत की थी उसके अनुसार “माओवादी समर्थकों ने व्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण रूप से शहरों और कस्बों में माओवादी सिध्दांतों के प्रचार प्रसार हेतु भारतीय तंत्र के प्रति एक तरह का युद्ध छेड़ने का दायित्व अपने कंधों पर लिया”।

(इन्हीं शहरों में रहने वाले माओवाद समर्थकों को ही “अर्बन नक्सल” कहा जाता है।)

और इन्हीं “अर्बन नक्सलियों” ने सही मायनों में भारत देश में “माओवादी आंदोलन” को जीवित रखा।

इस रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि कई अर्थों में ये लोग “people’s liberation of guerrilla army” (पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी) जो कि “कम्युनिस्ट पार्टी का भारत में प्रतिबंधित सशस्त्र सैन्य बल” है,  उससे भी अधिक घातक हैं क्योंकि ये सामान्य जनमानस की विचारधारा को प्रभावित करके उनके मनों “वर्तमान तंत्र के प्रति एक विद्रोही स्वभाव” को जन्म देने का प्रयास करते हैं ताकि देश की जनता इनके समर्थन में आए और इनके लक्ष्य को पूर्ण करने में बिल्कुल ही “अनभिज्ञ”(अनजान) होकर इनका साथ देने लगे।

ये लगभग तीन – चार स्तरों पर काम करते हैं – secret (गुप्त), open(मुक्त), semi open(अर्द्ध मुक्त), legal(कानूनी रूप से मुक्त)।

वरवरा राव (भीमा कोरेगांव हिंसा का आरोपी) जैसे लोग शहरी क्षेत्रों में आंदोलन करते हैं और इन्हीं “अर्बन नक्सलियों” द्वारा माओवादी क्रांति की रणनीति की तैयारी की जाती है, जिसमें “तथाकथित बुद्धिजीवियों” द्वारा इस आंदोलन को हर एक मंच से नैतिक और बौद्धिक समर्थन दिया जाता है और नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा और हिंसक विचारधारा को न्यायसंगत ठहराने का पूरा प्रपंच रचा जाता है।

माओवाद समर्थकों के हितैषियों का एक पूरा समूह भारत सरकार के “आंतरिक एवं उच्च पदों” पर आसीन हैं, यानि कि हम “सत्ताएं” बदलने में लगे रहे और इन वामपंथियों ने पूरी “व्यवस्था” पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया क्योंकि सत्ताएं तो “पांच साल” में बदल जाती हैं और व्यवस्था बदलने में पूरे “साठ साल” लग जाते हैं और आप अनुमान लगा ही सकते हैं कि साठ वर्षों के लंबे अंतराल में कितने लोगों का “कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रति धुव्रीकरण” किया जा सकता है।

माओ ने अपनी योजनांतर्गत कहा था कि इस क्रांति का अंतिम लक्ष्य  “शत्रु की नींव” यानि कि शहरों पर अपना आधिपत्य (कब्ज़ा) करना है और यह कार्य शहरों पर्याप्त कार्य किए बिना संभव नहीं है और इन कामों में लोगों का कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति ध्रुवीकरण करना, लोगों के मन में असंतुष्टि की भावना भरना, उनमें हीनता की भावना भरना, उनके  वर्तमान तंत्र के प्रति विद्रोही बनाना इत्यादि आता है।

तत्कालीन गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय में कहा गया था कि “अर्बन नक्सलियों की योजनानुसार ये अलग-अलग तरह की विचारधारा के राष्ट्रद्रोही, उग्रवादी और आतंकी संगठनों के साथ एक तरह का “इंद्रधनुष गठबंधन” (rainbow coalition) बनाते रहते हैं ताकि “वर्तमान तंत्र” पर सामने से  हिंसक आक्रमण किया जा सके।

यानि कि अलग-अलग तरीकों से तंत्र को धाराशाई करने के प्रपंच रचे जा रहे हैं, “अर्बन नक्सलियों” यानि कि इतिहासकारों, बुध्दिजीवियों और मीडिया कर्मियों द्वारा वर्तमान तंत्र पर “वैचारिक आक्रमण”, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ द्वारा तंत्र के विरोध में तरह-तरह के शाहीन बाग़ जैसे आंदोलन और इन्हीं से गुप्त रूप से संबंधित नक्सलियों और आतंकवादियों द्वारा वर्तमान तंत्र पर “हिंसक आक्रमण” किया जाता है।

आगे के लेखों में वामपंथ के और अन्य पहलुओं को व्याख्यात्मक रूप से समझेंगे कि कैसे वामपंथियों ने “व्यवस्था” पर कब्ज़ा कर उसे खोखला किया।

 तब तक के लिए हर हर महादेव 🙏🙏🙏

जैसा कि पिछले लेख में मैंने आपको “साम्यवाद” और “वामपंथ” क्या है, उसके बारे में आपको बताया था।

आज बात करेंगे कि ये आखिर किस तरह काम करते हैं, किस तरह भारत देश की व्यवस्था में ये लोग सेंधमारी कर चुके हैं और इनका “नक्सलियों” से क्या संबंध है?

जैसा कि पिछले लेख में मैंने आपको बताया था कि ये “वर्तमान तंत्र” को नष्ट करना चाहते हैं और एक नया साम्यवाद के सिध्दांतों पर आधारित तंत्र स्थापित करना चाहते हैं।

दरअसल ये यह काम करते कुछ इस तरह से हैं कि यह सभी तरह के “वंचित” और “असंतुष्ट लोगों के समूहों” को निशाना बनाते हैं और उनको अपने “हथियार” की तरह प्रयोग करते हैं, इनका सबसे आसान शिकार आदिवासी, दलित(शब्द जो कि वामपंथी इस्तेमाल करते हैं), महिलाएं और हर तरह के भाषा – संस्कृति आधारित या धार्मिक अल्पसंख्यक होते हैं क्योंकि इन समूह के लोगों के अंदर “असंतुष्टि की भावना” और “वर्तमान तंत्र के प्रति आक्रोश” उत्पन्न करना बेहद आसान होता है।

इसका कारण यह है कि इन लोगों को यह महसूस कराना बेहद आसान होता है कि आप पर बहुत “अत्याचार” किये गये हैं और वर्तमान व्यवस्था आपको मूलभूत अधिकार और स्वच्छंद जीवन जीने का अधिकार नहीं देती, और यह सब सुनकर वर्तमान तंत्र के प्रति एक विद्रोह की भावना इन लोगों मन जाग जाग जाती है और इन्हीं लोगों का प्रयोग अलग-अलग जगहों पर इनका लक्ष्य पूरा करने के लिए किया जाता है।

वामपंथियों का सारा ध्यान इस बात पर केंद्रित होता है कि किस तरह देश में “अस्त-व्यस्तता” फैलाई जा सके जिसे बाद में हिंसक प्रदर्शनों में परिवर्तित कर ख़ून ख़राबा किया जाये जिससे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो और फिर इसी अराजकता की स्थिति में “सशस्त्र क्रांति” के द्वारा वर्तमान तंत्र को धराशायी कर दिया जाये ताकि एक नया “साम्यवादी राज्य” स्थापित हो सके और  इनका स्वयं का लिखा हुआ एक “संवेदनहीन” संविधान लागू किया जा सके।

इनका संविधान एक प्रकार का दस्तावेज है जिसका नाम – “strategy and tactics document with urban perspective” (स्ट्रेटिजी एंड टैक्टिक्स डॉक्यूमेंट विथ अर्बन पर्सपेक्टिव) है। और यह इन्हीं वामपंथियों के द्वारा लिखा गया है।

और इस संविधान में साफ – साफ लिखा हुआ है कि

“हमें शहरी क्षेत्रों में प्रभावशाली व्यक्तियों जो कि काफी समय से हमारी संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, उनकी सहायता से आसानी से शिकार हो जाने वाले अल्पसंख्यक समूहों, महिलाओं, दलितों, मज़दूरों, वंचित लोगों और विद्यार्थियों को निशाना बनाना है”

 ताकि देश में एक तरह की  “अदृश्य नक्सल विचाराधारा का गठजोड़ बुध्दिजीवियों, मीडिया संस्थानों और शिक्षण संस्थानों के माध्यम से देश में विद्यमान हो सके जो कि सुनियोजित तरीके से घेराबंदी कर वर्तमान भारतीय तंत्र को धराशायी कर माओवादी शासन स्थापित करने का लक्ष्य प्राप्त करें”।

सोनिया गांधी की कांग्रेस सरकार के समय पर गृह मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट ग़लती से प्रस्तुत कर दी गई थी और “लाल बहादुर शास्त्री” की रहस्यपूर्ण मृत्यु पर बनी फिल्म के निर्देशक “विवेक अग्निहोत्री” दावा करते हैं कि उनके पास पर्याप्त साक्ष्य (सबूत) हैं कि उन लोगों को बाद में सोनिया गांधी द्वारा एक कमेटी बनाकर दंड भी दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत उस एफीडेविट (शपथ लेख/ हलफनामा) में कहा गया था कि “बहुत सारे संगठन मानवाधिकार एनजीओ के वेश में काम कर रहे हैं जो कि  साम्यवादी सिध्दांतों के समर्थकों, शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के द्वारा चलाये जाते हैं।

“Startegy and tactics of the Indian revolution by Maoists” ( माओवादियों द्वारा भारत में क्रांति हेतु योजना और रणनीति) – गृह मंत्रालय की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही ये लोग मानवाधिकार संगठनों के वेश में काम करते हैं लेकिन ये लोग अपनी पहचान अलग बताते हैं ताकि किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से बचा जा सके।

नक्सलियों की संपूर्ण सैन्य गतिविधियां भले ही  जंगली क्षेत्रों में होती हैं लेकिन उनकी पूरी फंडिंग और रणनीति शहरी क्षेत्रों (urban areas) में तैयार की जा जाती है इसीलिए इन लोगों को “अर्बन नक्सल” (urban naxal) भी कहते हैं।

ये लोग नारीवादी संगठनों (feminist groups), नास्तिक समूहों (atheist groups), अंधविश्वास विरोधी आंदोलन (anti superstitial movements), बुध्दिजीवियों(intellectuals), छात्रों(Students), मज़दूरों(labourers), झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ(slum groups), किसानों (farmers), पत्रकारों (journalists) और यहां तक कि प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों (competitive exam centers) तक के साथ काम करते हैं।

अब ये किस तरह काम करते हैं और इनका तोड़ क्या है यह आपको अगले लेखों में बताऊंगा क्योंकि यह विषय बहुत बड़ा है और सब कुछ एक लेख में लिखने से लेख काफी लंबा हो जायेगा।

तब तक के लिए

हर हर महादेव 🙏🙏🙏

#सशक्तभारतश्रेष्ठ_भारत

आज हम वामपंथ को समझेंगे और पूरे वामपंथी ढ़ांचे की “बाल की खाल” निकालेंगे। वामपंथ और साम्यवाद (communism) के इतिहास पर न जाकर मैं आपको इन सब का अर्थ और इनका लक्ष्य बताने को ज़्यादा ठीक समझूंगा।

साम्यवाद या वामपंथ और वामपंथी क्या हैं??

साम्यवाद एक तरह का सिध्दांत है या आंदोलन है, जो “अराजकता” का समर्थन करता है और राज्य या राष्ट्र की आवश्यकता और अवधारणा को अस्वीकार करता है और समाज में धन का वितरण भी समाज के साथ में ही रहे इस विचार का समर्थन करता है अर्थात् कोई भी व्यक्ति अपनी निजी संपत्ति नहीं रख सकता बल्कि संपत्ति का वितरण समाज द्वारा ही आवाश्यकतानुसार किया जायेगा। “साम्यवाद” के सिध्दांत का समर्थन करने वाला जनसमूह “वामपंथ” (left wing), और इस सिद्धांत का समर्थन करने वाला व्यक्ति “वामपंथी” (leftist) कहलाता है।

चूंकि वामपंथी अराजकता का समर्थन करते हैं और उनका मानना है कि वर्तमान में जो तंत्र, जो व्यवस्था देश में है वह भ्रष्टाचार से लिप्त है और इसे उखाड़ कर फेंक देना चाहिए और नये सिरे से साम्यवादी सिध्दांतों के साथ नया तंत्र बनाना चाहिए, यही कारण है कि हर “वामपंथी” आपको सरकारों के विरुद्ध बोलते हुए दिखेगा क्योंकि सरकारों का चयन वर्तमान में संचालित उसी व्यवस्था के आधार पर होता है जिसे ये उखाड़ फेंक देना चाहते हैं।

एक अन्य पहलू “वामपंथ” का यह है कि यह “राष्ट्र की आवश्यकता” और “राष्ट्र की अवधारणा” (idea of nation) को नकारता है यह राष्ट्र और सीमाओं के उन्मूलन में विश्वास रखता है इसी कारण “वामपंथी” देशद्रोही दिखलाई पड़ते हैं क्योंकि जो भी चीज़ आपमें “राष्ट्रीयता की भावना” जगाती है चाहे वो “राष्ट्रगान” हो, हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी परंपराएं हों, हज़ारों साल पुरानी हमारी समृद्ध सभ्यता हो, हमारी सनातन संस्कृति हो, वो हर चीज़ जो आपमें राष्ट्रीयता की भावना को और प्रबल करती हो और राष्ट्रीयता की भावना में बांधती हो एवं आपको राष्ट्र पर गर्व और राष्ट्र से प्रेम करने का कारण प्रदान करती हो, उस चीज़ का ये “वामपंथी” हमेशा विरोध करते हैं।

यही कारण है कि यह “राष्ट्रगान” में खड़े नहीं होना चाहते,
यही कारण है कि यह सबरीमाला और शनि शिंगणापुर वाले मुद्दों पर कोर्ट केस करते हैं, हिंदू शास्त्रों और ऋषि मुनियों का मज़ाक उड़ाते हैं।

इन “विषैले वामपंथियों” की एक और विशेषता होती है कि ये “अनीश्वरवादी” होते हैं यानि कि ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते, यही कारण है कि यह सब हिंदू धर्म की मान्यताओं पर हमेशा हमला करते रहते हैं क्योंकि हिंदू होने का अर्थ है कि आप अवश्य ही भारत देश पर गर्व करेंगे क्योंकि सनातन आपको अनेक कारण देता है भारत देश के वासी होने पर गर्व करने के क्योंकि सनातन से संबंधित हर एक घटना भारत में ही घटित हुई है जिसका ज्ञान आपके अपने भारतवासी होने की भावना को और बल प्रदान करता है और आप इस राष्ट्रीयता की पहचान को छोड़ने को बिल्कुल भी तैयार नहीं होते।

राम मंदिर का विरोध भी इसी कारण होता है क्योंकि जितने ज्यादा साक्ष्य आपके समक्ष अपनी संस्कृति की प्राचीनता को लेकर होंगे उतना ज़्यादा समाज की राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होगी। यही कारण है कि इन “वामपंथियों” ने हमेशा ही हमारे “इतिहास” से छेड़छाड़ की है और उसमें मिलावट कर हमारे आदर्शों की छवि धूमिल करने का प्रयास किया है क्योंकि ऐसे इतिहास कौन गर्व करना चाहेगा जो नकारात्मकता से भरा हो??? कोई भी व्यक्ति नहीं, और जब पूर्वजों के इतिहास पर गर्व करने का कोई कारण नहीं होगा तो कौन इतिहास और परंपराओं को याद करना और उन्हें संजोकर रखना चाहेगा??? और ऐसे समाज से राष्ट्रीयता की भावना को हटाना आसान हो जाता है जिसे अपने इतिहास पर ही गर्व न हो।

आपका स्वयं को “हिंदू” कहना ही इनको कभी रास नहीं आयेगा क्योंकि आपका ऐसा कहना ही आपके गौरवशाली इतिहास गौरवगान है जो कि याद दिलाता है कि आपकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं जो कि आपको अपनी पहचान कभी छोड़ने नहीं देगा इसलिए हिंदू धर्म को समाप्त करने के लिए “तथाकथित धर्मनिरपेक्षता” का प्रपंच रचा गया और हिंदुत्व की अवधारणा को समाप्त करने का प्रयास प्रारंभ हुआ क्योंकि यह बात ये “विषैले वामपंथी” भी जानते हैं कि “अगर हिंदू में हिंदुत्व शेष है तो इनका लक्ष्य असंभव ही रहने वाला है”।

भाईयों और बहनों इस लेख का अगला भाग भी लिखूंगा क्योंकि सभी तथ्यों का उल्लेख इस लेख में करूंगा तो लेख अधिक लंबा हो जायेगा।

लेख✍️ – #सशक्त_भारत_श्रेष्ठ_भारत

हर हर महादेव 🙏🙏🙏

Views expressed here are personal views of the author.